छत्तीसगढ

विष्णुदेव साय सरकार की ”नियद नेल्लानार” से लौट रही बस्तर में रौनक

रायपुर

छत्तीसगढ़ के बस्तर में बीजापुर जिला मुख्यालय से तकरीबन 45 किलोमीटर दूर बुरजी ग्राम पंचायत के ग्रामीणों में भारी उत्साह है। यहां के बच्चों ने स्कूल जाने के लिए बस्ता तैयार कर लिया है। वे पहली बार अपने ही गांव डुमरीपालनार ही पढ़ेंगे। अभी तक यहां के बच्चों को अपने अभिभावकों से दूर विकासखंड व जिला मुख्यालयों रहकर शिक्षा लेने की मजबूरी रही है। अब गांव में ही शिक्षा दूत भी पढ़ाने के लिए तैनात किए जा रहे हैं और स्कूल नहीं जाने वाले बच्चों को खोजकर स्कूल फिर चले अभियान (स्कूल वेंडे वर्राट् पण्डूम) से जोड़ा जा रहा है।

बीजापुर में अब तक सात हजार से अधिक बच्चे मिले हैं जो कि स्कूल पढ़ने नहीं जाते हैं। बीजापुर के अन्य कांवरगांव, मुतंडी, पालनार समेत 33 गांवों में पहली बार स्कूल खुलेंगे। दंतेवाड़ा में सात और सुकमा में पांच समेत कुल 45 गांवों में स्कूल-आश्रम व छात्रावास खुलने जा रहे हैं। अभी तक जिन इलाकों में स्कूल नहीं थे वहां के बच्चों को प्रशासन अभिभावकों की मदद से आवासीय विद्यालयों में शिक्षा की व्यवस्था करता रहा है।

इन बच्चों को विकासखंड और जिला मुख्यालयों में स्थित पोटा केबिन, आवासीय विद्यालय, कन्या शिक्षा परिसर, कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय, मुख्यमंत्री पब्लिक स्कूल, आवासीय विद्यालय, प्रयास आवासीय विद्यालय, एकलव्य आावासीय विद्यालय आश्रमों में रखकर शिक्षा दिलवाई जा रही थी। बीजापुर के पालनार में स्कूल-आंगनबाड़ी खुलने की जानकारी से स्थानीय सीता बाई कहती हैं कि मैं जवंगा में रहकर पढ़ी हूं। मुझे खुशी हो रही है कि इतने वर्षों बाद हमारे गांव में स्कूल खुल रहे हैं।

साय सरकार की पहल ने बदली तस्वीर
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय सरकार की ”नियद नेल्लानार” से बस्तर में खुशियां लौट रही है। नक्सल क्षेत्र में सुरक्षा कैंप बढ़ाए जा रहे हैं और यहां बंद स्कूलों को इस साल बहाल किया जा रहा है। इसके अलावा ग्रामीणों को तमाम बुनियादी सुविधाएं भी मिल रही है।

इनमें कुछ स्कूल ऐसे हैं जो कि वर्ष 2004-05 में सलवा जुडूम आंदोलन के दौरान नक्सली हिंसा के चलते बंद हो गए थे। ग्रामीणों की आंखों के सामने ही स्कूलों की इमारतें नक्सली हिंसा में उजड़ गईं थीं। इसी के साथ उनके बच्चों का भविष्य भी उजड़ गया था। अबकी बार इन गांवों में फिर बच्चों की चहक होगी और यहां के स्कूलों में ककहरा गूंजेगा। प्रदेश में 18 जून को प्रवेश उत्सव है, इस उत्सव में बंदूक पर बच्चों का बस्ता भारी पड़ने वाला है। नक्सली हिंसा, दहशत और विध्वंस के चलते वर्षों से बंद बस्तर संभाग के करीब 45 गांवों में स्कूल-आश्रम खुलेंगे। कुछ स्कूल पहली बार तो कुछ में दोबारा घंटी बजेगी। इनमें बीजापुर में 33, सुकमा में सात और दंतेवाड़ा में पांच आश्रम-छात्रावास खुलेंगे।

दंतेवाड़ा में यहां खुलेंगे छात्रावास

दंतेवाड़ा जिले के दंतेवाड़ा विकासखंड में बसातपुर, गामावाड़ा, झिरका, नस्ती, मूरेड गांव में छात्रावास खुलेगा। इनमें कुछ ऐसे गांव हैं जहां आज तक नक्सलियों की मांद होने के कारण प्रशासन नहीं पहुंच पाया था।

शिक्षक हुए नियुक्त, घास-फूस से बन रहे स्कूल

जिला प्रशासन ही नहीं, स्कूल खोलने की तैयारीमें ग्रामीण भी जुटे हुए हैं। बांस-लकड़ी, त्रिपाल की मदद से वे अस्थायी स्कूल की व्यवस्था कर रहे हैं, ताकि स्कूल खुलने में कोई अड़चन न आए। स्कूल में घंटी भी होगी है । बारिश को लेकर खास तैयारी की जा रही है। बीजापुर में 108 शिक्षा दूत नियुक्त किए जा चुके हैं। शिक्षा दूत गांव के ही 12वीं पास युवा हैं।

बीजापुर कलेक्टर अनुराग पांडेय ने कहा, 33 गांवों में नियद नेल्लानार योजना के तहत सभी बुनियादी सुविधाओं के साथ शिक्षा-स्वास्थ्य की सुविधा दे रहे हैं और स्कूल भी खोलने जा रहे हैं।

दंतेवाड़ा कलेक्टर मयंक चतुर्वेदी ने कहा, नियद नेल्लानार योजना के तहत विद्यार्थियों के लिए उन गांवों में छात्रावास भी खोलने का प्रस्ताव है जहां अभी तक नहीं खुल पाए थे।

 

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