छत्तीसगढ

गरियाबंद जिले के 4 आदिवासी कमार जनजाति गांव में पहुंची बिजली की रोशनी

गरियाबंद

बिजली की रौशनी मिलने की खुशी क्या होती है यह आदिवासी कमार बाहुल्य ग्राम भीरालाट के ग्रामीणों के बीच पहुंचकर ही महसुस किया जा सकता है. गरियाबंद जिला मुख्यालय से महज 15 किलोमीटर दुर नेशनल हाईवे मैनपुर गरियाबंद मुख्य मार्ग के किनारे बसे ग्राम पंचायत जोबा के आश्रित ग्राम भीरालाट बिजली की रौशनी पहुचने में 75 वर्ष का समय लग गया और अब जब गांव में बिजली की रौशनी पहुंची तो ग्रामीणों में खुशी की लहर देखने को मिल रही है. ग्रामीणों ने इसके लिए मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय का आभार जताते हुए खुशी जाहिर किया है और साथ ही मुख्यमंत्री साय को अपने गांव आने का निमंत्रण भी दिया है.

गरियाबंद जिले के दर्जनों गांव में बिजली लगाने की मांग को लेकर ग्रामीण सालों से संघर्ष कर रहे हैं, ऐसे में राज्य सरकार के महत्वपूर्ण योजना जो विशेष पिछड़ी जनजातियों के लिए संचालित की जा रही है. पीएम जनमन योजना के तहत लगातार मैनपुर विकासखण्ड क्षेत्र के छिंदौला, लूठापारा में तीन माह पूर्व ही बिजली की रौशनी पहुंचाई जा चुकी थी. तो वहीं नेशनल हाईवे मैनपुर गरियाबंद मार्ग में बसे कमार बाहुल्य पारा भीरालाट जिसमें लगभग 15 से 18 कमार जनजाति परिवार के लोग निवास करते हैं, यहां के ग्रामीण कई बार बिजली की मांग करते-करते थक चुके थे. अब साय सरकार ने इस गांव को बिजली से रौशन कर दिया है.

गरियाबंद जिला कलेक्टर दीपक अग्रवाल के सक्रियता और लगातार दिशा निर्देश के बाद बिजली विभाग गरियाबंद के कार्यपालन अभियंता अतुल तिवारी के विशेष प्रयास से पीएम जनमन योजना के तहत ग्राम भीरालाट में एक महीने पहले सर्वे कर गांव में बिजली का नया ट्रांसफार्मर लगाया गया और इस गांव के विशेष पिछड़ी जनजाति कमार ग्रामीणों के 15 घरों में बिजली का कनेक्शन दिया गया है.

एक हफ्ते पहले यहां बिजली कनेक्शन लगाकर इसका ट्रायल किया गया. इसके बाद इसे विधिवत शुरू किया गया. बारिश के मौसम के बीच गांव में बिजली की रौशनी पहुंचने से ग्रामीणों में खुशी की लहर है. ग्रामीणों ने इसके लिए पीएम मोदी और मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय का आभार जताया है.

ग्राम पंचायत जोबा के आश्रित ग्राम पारा भीरालाट जो नेशनल हाईवे के किनारे बसा है लेकिन यह गांव चारों तरफ घने जंगल से घिरा हुआ है. इसके कारण खासकर बारिश के दिनों में यहां जहरीले जीव-जन्तुओं और हिंसक वन्य प्राणियों का खतरा बना रहता है. तो वहीं सौर उर्जा से एक-डेढ घंटा ही रौशनी हो पाती थी. पूरी रात ग्रामीणों को अंधेरे में गुजारना पड़ता था. इस गांव के बच्चों को भी अब पढ़ाई के लिए बिजली की रौशनी मिलने से लालटेन से छुटकारा मिल गया है.

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