छत्तीसगढ

 ग्रीष्मकालीन धान के बदले दलहन-तिलहन, मक्का, उद्यानिकी फसलों को बढावा

रायपुर ।  जिले में गतवर्ष 11978 हेक्टेयर में ग्रीष्म कालीन धान की खेती की गई थी। इस वर्ष धान का रकबा 6478 हेक्टेयर कम कर के अन्य फसल जैसे दलहन 4125 हेक्टेयर में, तिलहन 1062 हेक्टेयर में, मक्का 89 हेक्टेयर में, उद्यानिकी 717 हेक्टेयर में, गेंहू 451 हेक्टेयर इस प्रकार कुल 6478 हेक्टेयर में प्रतिस्थापन की कार्ययोजना ग्रामवार बनाई गई है। इस के लिए वर्षा आधारित स्थिति में धान के पश्चात उतेरा फसल के रूप में विभिन्न दलहनी फसल- तिवडा, चना, मसूर, बटरी, इत्यादि तिलहनी फसलों- अलसी, सरसों इत्यादि को उपयुक्त समय में पर्याप्त नमी की उपलब्धता में बुआई किया जाएं।

जिन क्षेत्रो में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है, वहां पर रबी फसलों के लिए खेती की तैयारी अच्छे से करें। रबी के मौसम में मसूर, चना, मटर, सरसों, अलसी, कुसूम इत्यादि फसलों को खेतो को अच्छी तरह तैयार कर कतारों में बुआई करें। कृषक जिनके पास पर्याप्त सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है, वह खेत भलीभांति तैयार कर कतार में सिडड्रिल के माध्यम से गेहूं, मक्का, मटर, सरसों, सूर्यमूखी, आलू, प्याज एवं सब्जीयों की बुआई नवम्बर माह में पूर्ण कर लें तथा रागी फसल की बुआई जनवरी, फरवरी माह में किया जा सकता है। ग्रीष्म कालीन धान के बदले अन्य लाभकारी फसलों के खेती के लिए प्रचार-प्रसार का व्यापक अभियान संचालित करने के साथ ही अन्य ग्रीष्म कालीन फसलों के बीजों की पर्याप्त मात्रा में उपलब्धता सुनिश्चित की जा रही है। साथ किसानों की प्रगति की नियमित समीक्षा की जा रही है। विकासखण्ड स्तर पर कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों एवं विभागीय अधिकारियों के द्वारा प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा हैं।

प्रशिक्षण में निजी सिंचाई स्त्रोत वाले कृषकों अनिवार्य रूप शामिल किया जा रहा है। कृषको को समझाईस दी जा रही है कि ग्रीष्म कालीन धान की खेती करने से भू-जल स्तर वर्ष दर वर्ष नीचे जा रहा है, जिसके कारण गर्मी में ग्रामीणों क्षेत्रों में पेय जल समस्या उत्पन्न होती है। परिस्थिति भयवाह होने से पशुओं एवं मवेशियों के लिए भी पेय जल की समस्या हो रही है। अतः ग्रीष्म कालिन धान के बदले दहलन, तिलहन, मक्का उद्यानिकी फसल ले कर आसानी से लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

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