छत्तीसगढ

विजयदशमी पर्व के दौरान बस्तर में 200 साल पुरानी कालबान बंदूक की पूजा

जगदलपुर

विजयदशमी पर्व के दौरान बस्तर में राजकुमार कमलचंद भंजदेव ने हर साल की तरह इस साल भी राजमहल में कालबान बंदूक सहित अन्य अस्त्रों और अश्वों की पूजा की गई. सदियों पुरानी इस परंपरा को देखने के लिए इस बार भी बड़ी संख्या में लोग बस्तर के राज महल पहुंचे थे.

विजयदशमी पर राजमहल में शस्त्र पूजा की रस्म में एक खास कहानी जुड़ी हुई है, जिसके तहत मां दंतेश्वरी मंदिर में राजकुमारी मेघावती के कालबान बंदूक और माईजी के निशान (लाट) को ससम्मान मंदिर में स्थापित कर परंपरा अनुसार इस शस्त्र की पूजा की जाती है. जानकार बताते हैं कि मेघावती पासकंड की राजकुमारी मेघावती ने 200 साल पूर्व कालबान बंदूक बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी को भेंट की थी, और तब से यह बंदूक मां दंतेश्वरी के मंदिर में रखा गया है.

शनिवार को विजयदशमी के दिन कालबान बंदूक को मंदिर से बाहर निकाला गया और इसकी पूजा की गयी. यह भरमार बंदूक करीब 8 फीट लंबी और 20 किलो से ज्यादा वजनी हैं. कालबान के साथ ही देवी निशान (लाट) दंतेश्वरी मंदिर में स्थापित करने वाले तुकाराम यादव बताते हैं कि देवी निशान (लाट) राजमहल परिसर में मंदिर निर्माण के मौके पर सन् 1894 में राज परिवार ने उनके पूर्वजों को सौंपा था.

इस समय से बस्तर दशहरा के दौरान उनके परिवार के लोग इस लाट को मंदिर में स्थापित करने की परंपरा का निर्वहन करते चले आ रहे हैं. इस कालबान बंदूक और लाट को बस्तर दशहरा की महत्वपूर्ण रस्म भीतर रैनी और बाहर रैनी रस्म के लिए मंदिर से पूजा के लिए बाहर निकाला जाता है, और बाकायदा इसकी पूजा-पाठ की जाती है.

रियासतकाल की दिखती है परंपरा
बस्तर राजपरिवार के राजकुमार कमलचंद भंजदेव ने बताया कि इस खास शस्त्र की पूजा के साथ-साथ राजमहल में मौजूद अश्वों की पूजा की जाती है. इस परंपरा को रियासत काल से ही निभाया जा रहा है. इसके अलावा बस्तर राजपरिवार के पास मौजूद सभी शस्त्र, संसाधनों और अश्वों की पूजा बड़ी धूमधाम से की जाती है, और इस दौरान बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहते हैं. इस साल राज परिवार के द्वारा राज महल में किए गए अश्वों की पूजा को देखने बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहे.

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