छत्तीसगढ

 महिला लोको पायलटों के लिए क्या इंजन में की जाएगी प्रसाधन की व्यवस्था ?

बिलासपुर । बिलासपुर रेल मण्डल के महिला लोको पायलटों (ड्राइवर) का व्यथा है कि रेल इंजनों (लोको) में महिलाओं के लिए प्रसाधन की कोई व्यवस्था नहीं। वहीं रेलवे प्रशासन अब भी इस ओर उदासीन है। वहीं पुरूष लोको पायलटों का शिकायत है कि उनके जिम्मे में डेटोनेटर दे दिया जाता है। डटोनेटर को ले जाना, लाना, उसे जमा करना अब उनकी जिम्मेदारी है। अगर घूमा या फूटा तो इसका जवाब देना पड़ता है। साथ ही उनको पूरी तरह से रेस्ट नहीं मिलता है। रनिंग रूम के टॉयलेट साफ नहीं रहते। इंजनों में एसी की ठीक से व्यवस्था नहीं है। किसी में है किसी में नहीं है। स्टाफ की कमी है।
उक्त बातें आज बिलासपुर रेल मंडल के गार्ड, ड्राइवरों के लॉबी में पत्रकारों से चर्चा करते हुए उन्होंने बताया। उनका कहना है कि रेलवे एक बहुत बड़ी संस्था है और उस संस्था में बहुत बड़ी जिम्मेदारी की काम हम करते हैं। मालगाड़ी के गार्ड, ड्राइवरों को गर्मी और बरसात दोनों से ही गुजरना पड़ता है। गर्मी में जहां बाहर का तापमान 45 डिग्री रहता है वहीं इंजन के अंदर वो 55 डिग्री हो जाता है ऐसे में हमें 12 घंटे काम करना पड़ता है। इससे हमारी कार्यक्षमता में कमी आने लगता है साथ ही सेहत पर भी इसका प्रभाव पड़ता है। अभी कुछ इंजनों में एसी की व्यवस्था किया गया है पर पूरे इंजनों में अभी एसी नहीं लगी है। और गार्ड के डिब्बे में कोई लाइट की व्यवस्था नहीं है साथ ही इतना खुला-खुला है कि गर्मी और बरसात में काम करना बहुत कठिन हो जाता है। वहीं गार्ड, ड्राइवरों के लिए बनाए गए रनिंग रूम में भी व्यवस्था ठीक नहीं है। शौचालय में साफ-सफाई रहता ही नहीं है। कुछ रनिंग रूम को तो ऐसे बनाया गया है कि ट्रेन के आने-जाने से हिलने लगता है जैसे भूकंप आया हो। इससे सही माने में रेस्ट नहीं मिल पाता है। इसका असर हमारे सेहत पर पड़ता है। वहीं स्टाफ की कमी के कारण अधिक काम करना पड़ता है। वहीं बिलासपुर रेल मंडल में दो लोको पॉयलट और 15 के करीब सहायक लोको पॉयलट है। महिला लोको पॉयलटों का कहना है कि हमारी सबसे बड़ी व्यथा यह है कि मंडल रेलवे के इंजनों में महिलाओं के लिए कोई टॉयलट की व्यवस्था नहीं है। चलती ट्रेन में अगर टॉयलेट लगे तो हमें रोक कर रखना पड़ता है। साथ ही पिरेड के समय पेड भी नहीं बदल पाते जिससे बहुत परेशानियां होती है। वहीं अगर किसी की पेट खराब हो गया तो हालत खराब हो जाता है। ऐसे में रेल प्रशासन को चाहिए कि इस ओर विशेष रूप से ध्यान दें।
अधिकारियों ने रखा अपना पक्ष
इस संबंध में जब अधिकारियों से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि रेलवे में गार्ड और ड्राइवरों का 12 घंटे का ड्यूटी होता है और उन्हें 12 घंटे में ही छोड़ दिया जाता है। उनके रेस्ट के लिए अलग-अलग स्टेशनों में रनिंग रूम बनाया गया है। व्यस्त रूट में विशेष रूप से रेस्ट रूम की व्यवस्था किया गया है। ड्यूटी के 12 घंटे पूरे होने पर जिस स्टेशन में टे्रन रहती है, उस स्टेशन के लिए सड़क मार्ग से वाहनों द्वारा ड्राइवर या गार्ड को ले जाते हैं। उस स्टेशन पर ड्राइवर या गार्ड चार्ज लेता है और जिसका ड्यूटी पूर हो जाता है उसे उसी वाहन से छोड़ा जाता है। वहीं इंजन में एसी लगाने के बारे में बताया कि बिलासपुर मंडल के पास कुल 200 लोको (इंजन) है इसमें से 181 इंजनों में एसी लग चुका है और 19 इंजनों में एसी लगा दिया जाएगा। रही बात डेटोनेटर की तो वो छोटा सा टीने के डिब्बे में बंद रहता है बहुत वजन नहीं है और इसका फूटने का डर नहीं है क्योंकि बहुत ज्यादा वजन से दबाए जाने पर ही फूटेगा। वहीं महिलाओं के लिए इंजन में शौचालय के संबंध में बताया कि पहले महिला लोको पॉयलट नहीं होते थे इस कारण इंजन में महिलाओं के लिए शौचालय की व्यवस्था नहीं किया जाता था। अब महिला लोको पॉयलट का काम करने लगे हैं। बिलासपुर रेल मंडल में दो लोको पॉयलट हैं और इन्हें उनके अनुसार काम लिया जाता है। बताया जाता है कि अगर दो महिला पॉयलट के लिए 200 इंजन में टॉयलेट की व्यवस्था करना पड़े खर्चा बहुत अधिक पड़ेगा। आगे इस सुविधा के लिए प्रयास किया जा सकता है।

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